क्या हो अगर पृथ्वी का क्रस्ट अचानक खुल जाए | क्या पृथ्वी के क्रस्ट के बिना जीवन संभव होगा?

आपके पैरों के नीचे ज़मीन की गहराई में धधकते हुए अंगारे हैं। आग से भरा पाताल जो किसी भी पल उबलने के लिए तैयार है। कहीं भी या कभी भी।


सोचिए कि आज वो दिन है जब आपके पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक जाएगी और "क्या हो अगर पृथ्वी का क्रस्ट अचानक खुल जाए | क्या पृथ्वी के क्रस्ट के बिना जीवन संभव होगा?" बड़ी दरारों की वजह से बेहिसाब तबाही होगी और शहर की सड़कें दहकते हुए लावा से ढक जाएंगी।


क्या पृथ्वी के क्रस्ट के बिना जीवन संभव होगा?
क्या पृथ्वी के क्रस्ट के बिना जीवन संभव होगा?


लार्ज इग्नियस प्रोविंस क्या है?


हमारा प्लैनेट जियोलॉजिकली यानी भूवैज्ञानिक तौर पर एक्टिव है। बुरी ख़बर ये है कि हम ये नहीं बता सकते कि कब और कहां एक लार्ज इग्नियस प्रोविंस (या एल.आई.पी) यानी बड़ा आग्नेय प्रांत बन सकता है। एल.आई.पी ऐसे जियोलॉजिकल इलाक़े होते हैं जो तब बनते हैं जब अर्थ की सर्फ़ेस पर भारी मात्रा में मैग्मा बहता है।


इससे एक छोटी जगह के उभरने, कॉन्टिनेंट्स के फट कर अलग होने, ज़मीन के टूटने और क्लाइमेट में बदलाव आने जैसी कई चीज़ें हो सकती हैं। एल.आई.पी वैसे तो कम ही नज़र आते हैं, लेकिन इनका घर अर्थ के अंदर ही है।


एल.आई.पी भी कर सकता है हमारा खात्मा


हममें से ज़्यादातर लोग जानते हैं कि एक एस्टेरॉयड अर्थ से टकराया था और सारे डायनासोर्स को ख़त्म कर दिया था, लेकिन कई लोग ये नहीं जानते कि 25 करोड़ साल पहले साइबेरिया में बने एक लार्ज इग्नियस प्रोविंस से अर्थ लगभग तबाह हो गई थी।


एल.आई.पी की वजह से तबाही


अब सोचिए कि हमें आज के वक़्त में एक ऐसे बड़े एल.आई.पी का सामना करना पड़े। शहरी इलाक़ों में दरारों के चलते बर्बादी होगी जो ढेर सारी तबाही की वजह बनेगी।


और वो अर्थक्वेक्स? ये तो बस ट्रेलर हैं। इसके बाद, बेहिसाब लावा की फिल्म शुरू होगी। एक बार ये लावा बाहर आ गया तो सब कुछ बर्बादी की कगार पर होगा।


प्रकृति को होगा नुकसान


एल.आई.पी की वजह से फसलों के लिए ज़रूरी खेती की ज़मीन जल जाएगी। झील, झरने और नदियां ज़्यादा लावा होने पर भाप में बदल जाएंगे। और ये देखते हुए कि लावा कितनी तेज़ी से बहता है, विलुप्ति की कगार पर खड़ी स्पिशीस को अगर वक़्त पर सुरक्षित जगहों पर नहीं पहुंचाया गया तो वो ख़त्म हो सकती हैं।


अर्थव्यवस्था पर भी इसका भयानक असर होगा


स्कूल, दुकानें और हॉस्पिटल्स सब बर्बाद हो जाएंगे, साथ ही हाईवेज़, पावर बनाने वाली फैसिलिटीज़, गैस लाइनें और पानी की टंकियां भी ख़त्म हो जाएंगी। और आपने वो जो ख़ूबसूरत घर अभी हाल ही में ख़रीदा था? वो लावा से ढक चुका है। आपकी नई गाड़ी? वो भी लावा के नीचे है। और आप ख़ुद?


लावा के बहने की गति


ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के मुताबिक़ हवाई के माउंट किलोवेया जैसी एक चपटी ढलान पर लावा 10 किलोमीटर (6.2 मील) प्रति घंटे की सबसे तेज़ रफ्तार से बहता है। लोगों के चलने की औसत रफ्तार लगभग 5 किलोमीटर (3.1 मील) प्रति घंटा होती है और भागने की लगभग 13 किलोमीटर (8 मील) प्रति घंटा।


तो अगर आप भागने में अच्छे रहे हैं, तो आपके लिए उसे आज़माने का ये अच्छा समय होगा। लेकिन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो के माउंट नाइरागोंगो से नीचे बहने वाला लावा की रफ्तार 100 किलोमीटर (62 मील) प्रति घंटा होती है। तो इससे बचना मुश्किल है।


लावा से निकलने वाली गर्मी और गैस 


इससे निकलने वाली भयानक गर्मी, और हर चीज़ को छूने पर पिघला कर ख़त्म कर देने के अलावा, लावा हवा में पार्टिकल्स और सल्फर, कार्बन डाईऑक्साइड और हैलोजेन जैसी ज़हरीली गैसेस भी छोड़ता है। अगर आप लावा के रास्ते से हट भी जाते हैं, तो भी आप हवा में मौजूद गैस और पार्टिकल्स को सांस के साथ अंदर लेने के ख़तरे में होंगे।


आप कितनी देर तक अपनी सांस रोक सकते हैं? तो ये सब होने के बाद वैसे एल.आई.पी के बनने पर बचने की कोई टिप्स या स्ट्रैटेजी तो नहीं है। ये कैसे और कब बनते हैं, ये एक पेचीदा विषय है, जिसके लिए साइंस की कई अलग-अलग बातों को समझना होगा।


लेकिन ऐसा नहीं है कि ये वाकई होने वाला है, ये बिल्कुल हो सकता है। 2018 में, हवाई का माउंट किलोवेया फटा और 700 से ज़्यादा घर बर्बाद हो गए। अब, किलोवेया एक लार्ज इग्नियस प्रोविंस की जगह एक ज्वालामुखी है, लेकिन इससे ये बात साफ़ हो जाती है कि मैग्मा अब भी अर्थ के सर्फ़ेस तक बह कर आ रहा है, और इससे कहीं ज़्यादा अर्थ के कौर और मैंटल में छुपा हुआ है।


एल.आई.पी से बचा जा सकता है?


तो शायद हमें पहले इसके लिए प्लानिंग कर लेनी चाहिए। ऐसे कई तरीक़े हैं जो ज्वालामुखी फटने और अर्थक्वेक्स का सामना करने के लिए बनाए गए हैं, तो किसी एल.आई.पी के लिए कोई तरीक़ा क्यों नहीं हो सकता? हमारा प्लैनेट लगातार शिफ्ट होने वाला है और हमेशा बदलता रहने वाला है।


जिससे हम ये सोचने पर मजूबर हो जाते हैं कि इस तरह के जियोलॉजिकल फेर-बदल से किस तरह की चीज़ें सामने आ सकती हैं।


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